कश्मीर मुद्दे को जिंदा रखने की पाकिस्तानी साजिश: चीन और अमेरिका के बीच 'मुनीर का प्लान' और भारत की मजबूत प्रतिक्रिया
वैश्विक भू-राजनीति की जटिल शतरंज पर, पाकिस्तान एक बार फिर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने और अपने सबसे पुराने एजेंडे, यानी कश्मीर मुद्दे को जीवित रखने के लिए एक खतरनाक खेल खेल रहा है। हाल के दिनों में, पाकिस्तान ने एक नई 'संतुलनकारी कूटनीति' का प्रदर्शन किया है, जिसका उद्देश्य दो विरोधी वैश्विक शक्तियों - चीन और अमेरिका - के बीच अपने संबंधों को साधना है। यह रणनीति, जिसे विशेषज्ञ 'मुनीर का प्लान' कह रहे हैं, पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व में आकार ले रही है। इसका दोहरा उद्देश्य है: एक तरफ आर्थिक और सैन्य लाभ प्राप्त करना और दूसरी तरफ कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार उठाते रहना। जबकि पाकिस्तान इस दोहरी चाल से अपने हितों को साधने की कोशिश कर रहा है, भारत अपनी दृढ़ और स्पष्ट नीति के साथ खड़ा है, जो इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह लेख पाकिस्तान की इस कूटनीति, इसके पीछे की मंशा, वैश्विक शक्तियों की भूमिका और भारत के लिए इसके प्रभावों का गहराई से विश्लेषण करेगा।
मुख्य बातें
- पाकिस्तान, कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रखने के लिए चीन और अमेरिका के बीच एक जटिल 'संतुलनकारी कूटनीति' अपना रहा है।
- पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर की चीन यात्रा और विदेश मंत्री इशाक डार की अमेरिका यात्रा इसी दोहरी रणनीति का हिस्सा हैं।
- चीन अपने रणनीतिक हितों के लिए कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थन करता है, जबकि अमेरिका इसे भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला मानता है, लेकिन पाकिस्तान के साथ अपने संबंध भी बनाए रखना चाहता है।
- भारत इस प्रचार का दृढ़ता से मुकाबला कर रहा है और जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है, जिसमें किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
- पाकिस्तान की यह रणनीति आर्थिक तंगी, आंतरिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय अलगाव से बचने का एक प्रयास है, लेकिन इसकी सफलता संदिग्ध है।
पाकिस्तान की दोहरी कूटनीति: चीन और अमेरिका के बीच संतुलन
पाकिस्तान की विदेश नीति हमेशा से ही एक नाजुक संतुलन का कार्य रही है, लेकिन मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में यह और भी जटिल हो गई है। एक तरफ उसका 'सदाबहार दोस्त' चीन है, जो उसे आर्थिक और सैन्य रूप से भारी समर्थन देता है, और दूसरी तरफ अमेरिका है, जो ऐतिहासिक रूप से उसका सहयोगी रहा है और वैश्विक वित्तीय प्रणालियों पर जिसका प्रभाव निर्विवाद है। इस संतुलन को साधने की नवीनतम कोशिशें पाकिस्तान के दो सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों - सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और उप-प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री इशाक डार - के हालिया दौरों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।
असीम मुनीर का चीन दौरा: सैन्य और रणनीतिक गठजोड़
जनरल असीम मुनीर, जिन्हें पाकिस्तानी प्रतिष्ठान का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है, ने हाल ही में चीन का एक महत्वपूर्ण दौरा किया। यह यात्रा केवल एक नियमित सैन्य आदान-प्रदान नहीं थी, बल्कि यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) और व्यापक सैन्य सहयोग सहित रणनीतिक संबंधों को गहरा करने का एक स्पष्ट संकेत था। चीन, पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे मंचों पर उसका एक विश्वसनीय समर्थक भी है, खासकर जब कश्मीर का जिक्र आता है। मुनीर की यात्रा इस बात को पुष्ट करती है कि पाकिस्तान अपनी सुरक्षा और रणनीतिक गहराई के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। चीन के लिए, पाकिस्तान दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को संतुलित करने और हिंद महासागर तक सीधी पहुंच बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी है। इसलिए, चीन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करके इस संबंध को मजबूत बनाए रखने में अपना हित देखता है।
इशाक डार की वाशिंगटन यात्रा: आर्थिक मजबूरियाँ और कूटनीतिक पहुँच
लगभग उसी समय, जब मुनीर बीजिंग में थे, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के साथ बैठकें कर रहे थे। नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इशाक डार ने अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात की, जो यह दर्शाता है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को नजरअंदाज नहीं कर सकता। गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से राहत पैकेज और अन्य वित्तीय सहायता के लिए अमेरिका के समर्थन की सख्त जरूरत है। इसके अलावा, आतंकवाद विरोधी सहयोग और अफगान स्थिरता जैसे मुद्दों पर अमेरिका के साथ जुड़ाव पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है। डार की यात्रा यह सुनिश्चित करने का एक प्रयास था कि चीन के साथ पाकिस्तान के गहरे होते संबंधों के बावजूद, वाशिंगटन के दरवाजे उसके लिए खुले रहें। यह एक क्लासिक 'संतुलनकारी कूटनीति' का उदाहरण है, जहां पाकिस्तान दोनों शक्तियों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है कि वह दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
कश्मीर मुद्दे को जीवित रखने की पाकिस्तानी रणनीति
पाकिस्तान की विदेश नीति का केंद्रबिंदु दशकों से कश्मीर रहा है। इसे 'पाकिस्तान का अधूरा एजेंडा' बताकर, हर पाकिस्तानी सरकार और सैन्य प्रतिष्ठान ने इसे अपनी राष्ट्रीय पहचान और विदेश नीति के मूल में रखा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जब भारत ने जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त कर दिया, तो पाकिस्तान के लिए इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना और भी महत्वपूर्ण हो गया। उसकी वर्तमान रणनीति के कई पहलू हैं, जो उसकी हताशा और भू-राजनीतिक मजबूरियों को दर्शाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीयकरण का निरंतर प्रयास
पाकिस्तान का प्राथमिक लक्ष्य कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है, यानी इसे भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय विवाद से बढ़ाकर एक वैश्विक समस्या के रूप में प्रस्तुत करना। इसके लिए वह संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार परिषदों, और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे मंचों का लगातार उपयोग करता है। चीन और अमेरिका जैसी शक्तियों के साथ अपनी बैठकों में, पाकिस्तानी नेता नियमित रूप से कश्मीर का उल्लेख करते हैं, इस उम्मीद में कि वे मध्यस्थता के लिए दबाव डालेंगे। हालांकि, भारत के मजबूत कूटनीतिक प्रयासों और स्पष्ट रुख के कारण पाकिस्तान को इसमें बहुत कम सफलता मिली है। अधिकांश देश, अमेरिका सहित, अब इसे एक द्विपक्षीय मुद्दा मानते हैं जिसे भारत और पाकिस्तान को बातचीत के माध्यम से हल करना चाहिए।
आंतरिक राजनीति और सेना की भूमिका
पाकिस्तान में, कश्मीर मुद्दा केवल एक विदेश नीति का विषय नहीं है, बल्कि यह एक शक्तिशाली आंतरिक राजनीतिक उपकरण भी है। यह राष्ट्रवाद की भावनाओं को भड़काने और जनता का ध्यान देश की गंभीर आर्थिक समस्याओं, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता से हटाने का काम करता है। पाकिस्तानी सेना, जो देश की राजनीति और विदेश नीति पर भारी नियंत्रण रखती है, कश्मीर मुद्दे को जीवित रखकर अपनी प्रासंगिकता और बजट को सही ठहराती है। जनरल असीम मुनीर की रणनीति इसी व्यापक खेल का हिस्सा है। वह यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सेना देश की रक्षक और राष्ट्रीय हितों की प्रहरी के रूप में अपनी छवि बनाए रखे, और कश्मीर इस छवि का एक अभिन्न अंग है।
भारत के खिलाफ दुष्प्रचार
रणनीति का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के खिलाफ एक निरंतर सूचना युद्ध या दुष्प्रचार अभियान चलाना है। सोशल मीडिया, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रायोजित लेखों और लॉबिंग फर्मों के माध्यम से, पाकिस्तान कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का एकतरफा और अक्सर झूठा नैरेटिव पेश करने की कोशिश करता है। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय जनमत को भारत के खिलाफ करना और भारत की एक लोकतांत्रिक और सहिष्णु देश की छवि को धूमिल करना है। हालांकि, भारत सरकार ने इन प्रयासों का मुकाबला करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया है, दुनिया के सामने तथ्यों को रखा है और जम्मू-कश्मीर में विकास और सामान्य स्थिति की बहाली के लिए उठाए गए कदमों पर प्रकाश डाला है।
वैश्विक शक्तियों का दृष्टिकोण: चीन और अमेरिका की भूमिका
पाकिस्तान की 'संतुलनकारी कूटनीति' की सफलता या विफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि चीन और अमेरिका उसके खेल को कैसे देखते हैं और अपने स्वयं के हितों के लिए इसका उपयोग कैसे करते हैं। इन दोनों शक्तियों के दृष्टिकोण में जमीन-आसमान का अंतर है, जो इस क्षेत्र की भू-राजनीति को और भी जटिल बनाता है।
चीन: पाकिस्तान का 'सदाबहार' रणनीतिक साझेदार
चीन के लिए पाकिस्तान एक अमूल्य रणनीतिक संपत्ति है। यह न केवल भारत को दक्षिण एशिया में उलझाए रखने में मदद करता है, बल्कि चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रमुख परियोजना, CPEC, का भी घर है। चीन ने CPEC में अरबों डॉलर का निवेश किया है और वह इसकी सुरक्षा और सफलता सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करेगा। इसलिए, चीन कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के रुख का लगातार समर्थन करता है। वह संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के पक्ष में वीटो का उपयोग करता है और अक्सर ऐसे बयान जारी करता है जो भारत के रुख को चुनौती देते हैं। चीन का समर्थन पाकिस्तान को एक बड़ी शक्ति से संरक्षण का एहसास देता है और उसे कश्मीर पर अपना आक्रामक रुख बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह चीन-पाकिस्तान गठजोड़ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती है, क्योंकि यह भारत को दो मोर्चों पर एक साथ मुकाबला करने के लिए मजबूर करता है।
अमेरिका: एक जटिल और अवसरवादी संबंध
अमेरिका के साथ पाकिस्तान का संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरा रहा है। शीत युद्ध के दौरान एक प्रमुख सहयोगी होने से लेकर 9/11 के बाद 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' में एक महत्वपूर्ण भागीदार बनने तक, पाकिस्तान अमेरिकी विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। हालांकि, हाल के वर्षों में यह संबंध तनावपूर्ण हो गया है, खासकर आतंकवाद को पाकिस्तान के चयनात्मक समर्थन और चीन के साथ उसकी बढ़ती निकटता के कारण। फिर भी, अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर सकता। अफगानिस्तान में स्थिरता, क्षेत्रीय सुरक्षा और परमाणु हथियारों की सुरक्षा जैसे मुद्दों के लिए अमेरिका को पाकिस्तान के सहयोग की आवश्यकता है। इसलिए, अमेरिका एक सतर्क संतुलन बनाए रखता है। वह कश्मीर मुद्दे को सीधे तौर पर भारत का आंतरिक और द्विपक्षीय मामला बताता है, लेकिन साथ ही पाकिस्तान को आर्थिक और सुरक्षा सहायता भी प्रदान करता है। अमेरिका की नीति पाकिस्तान को पूरी तरह से चीन के पाले में जाने से रोकने और अपने क्षेत्रीय हितों को साधने की है। यह अवसरवादी दृष्टिकोण पाकिस्तान को अपनी 'संतुलनकारी कूटनीति' खेलने के लिए जगह देता है।
भारत पर प्रभाव और आगे की राह
पाकिस्तान की निरंतर कूटनीतिक चालें और कश्मीर मुद्दे को जीवित रखने के उसके प्रयास भारत के लिए कई चुनौतियां पेश करते हैं, लेकिन यह भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति और मजबूत कूटनीतिक स्थिति को भी उजागर करता है। भारत ने इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया है और एक स्पष्ट और दृढ़ प्रतिक्रिया विकसित की है।
कूटनीतिक और सुरक्षा चुनौतियां
पाकिस्तान के प्रचार अभियान से भारत पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है। हालांकि भारत ने अधिकांश देशों को अपने दृष्टिकोण से अवगत करा दिया है, फिर भी उसे लगातार सतर्क रहने और पाकिस्तान के झूठे नैरेटिव का मुकाबला करने की आवश्यकता है। सुरक्षा के मोर्चे पर, कश्मीर मुद्दे को राजनीतिक रूप से गर्म रखने से सीमा पार आतंकवाद और घुसपैठ को बढ़ावा मिल सकता है। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों को अक्सर प्रतिष्ठान से प्रोत्साहन मिलता है जब कश्मीर पर बयानबाजी तेज होती है। यह भारत के लिए सीमा पर निरंतर निगरानी और एक मजबूत सुरक्षा तंत्र बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। इन सभी कारकों का सीधा असर खराब भारत-पाकिस्तान संबंधों पर पड़ता है, जिससे किसी भी सार्थक बातचीत की संभावना कम हो जाती है।
भारत की मजबूत और स्पष्ट प्रतिक्रिया
भारत की प्रतिक्रिया बहुआयामी और प्रभावी रही है। सबसे पहले, भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न अंग है और अनुच्छेद 370 का निरस्त होना पूरी तरह से उसका आंतरिक मामला है। भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है। दूसरे, भारत ने जम्मू-कश्मीर में विकास, शासन और सुरक्षा की स्थिति में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया है। जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव पाकिस्तान के प्रचार को कमजोर करते हैं। तीसरे, भारत ने अपनी कूटनीति के माध्यम से दुनिया भर के प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है। अमेरिका, फ्रांस, रूस और मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के मजबूत संबंध पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने में मदद करते हैं। अंत में, भारत ने आतंकवाद के प्रति 'शून्य-सहिष्णुता' की नीति अपनाई है और स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा के लिए कोई भी आवश्यक कदम उठाएगा।
पाकिस्तान की संतुलनकारी कूटनीति का मुख्य उद्देश्य दोहरा है। पहला, चीन से सैन्य और आर्थिक सहायता प्राप्त करना और दूसरा, अमेरिका और पश्चिमी देशों से वित्तीय सहायता (जैसे IMF पैकेज) और कूटनीतिक समर्थन हासिल करना। इस रणनीति के माध्यम से, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक बनाए रखना चाहता है और अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को बचाना चाहता है।
इस रणनीति में जनरल असीम मुनीर और इशाक डार की क्या भूमिका है?जनरल असीम मुनीर, पाकिस्तानी सेना के प्रमुख के रूप में, चीन के साथ रणनीतिक और सैन्य संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वह पाकिस्तान की सुरक्षा नीति और चीन के साथ गहरे गठजोड़ के मुख्य सूत्रधार हैं। वहीं, विदेश मंत्री इशाक डार अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को संभालने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। यह भूमिकाओं का विभाजन पाकिस्तान की दोहरी रणनीति को दर्शाता है।
कश्मीर मुद्दे पर चीन और अमेरिका का दृष्टिकोण इतना अलग क्यों है?चीन, भारत को एक क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है और पाकिस्तान को भारत के खिलाफ एक रणनीतिक संतुलन बनाने वाले के रूप में उपयोग करता है। इसलिए, वह कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता है। इसके विपरीत, अमेरिका भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानता है। हालांकि वह पाकिस्तान के साथ भी संबंध बनाए रखना चाहता है, लेकिन वह कश्मीर को भारत का आंतरिक और द्विपक्षीय मामला बताकर एक तटस्थ रुख अपनाता है, जो वास्तव में भारत की स्थिति का समर्थन करता है।
पाकिस्तान की इन कोशिशों का भारत-पाकिस्तान संबंधों पर क्या असर पड़ता है?पाकिस्तान के इन निरंतर प्रयासों से भारत-पाकिस्तान संबंधों में अविश्वास और गहरा होता है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना और कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना बंद नहीं करता, तब तक दोनों देशों के बीच सार्थक बातचीत की कोई संभावना नहीं है। यह क्षेत्र में तनाव को बढ़ाता है और शांति और स्थिरता की संभावनाओं को कमजोर करता है।
निष्कर्ष: एक असफल रणनीति और भारत का बढ़ता कद
अंततः, पाकिस्तान की चीन और अमेरिका के बीच संतुलन साधने और कश्मीर मुद्दे को जिंदा रखने की रणनीति उसकी हताशा का प्रतीक है। यह एक ऐसी रणनीति है जो आंतरिक कमजोरियों, आर्थिक संकट और घटती अंतरराष्ट्रीय प्रासंगिकता से पैदा हुई है। जबकि जनरल असीम मुनीर और इशाक डार जैसे नेता इस दोहरी चाल को खेलने की कोशिश कर सकते हैं, दुनिया अब पहले से कहीं अधिक जागरूक है। चीन अपने स्वार्थ के लिए पाकिस्तान का उपयोग कर सकता है, और अमेरिका अपने सीमित हितों के लिए उसके साथ जुड़ सकता है, लेकिन कोई भी बड़ी शक्ति अब कश्मीर पर पाकिस्तान के नैरेटिव को गंभीरता से नहीं लेती है।
इसके विपरीत, भारत एक आत्मविश्वास से भरे और जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है। अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था, स्थिर लोकतंत्र और सक्रिय कूटनीति के साथ, भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर कोई सवाल न उठाया जाए। भारत-पाकिस्तान संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि पाकिस्तान कब यह वास्तविकता स्वीकार करता है कि उसका विकास और समृद्धि भारत के साथ शत्रुता में नहीं, बल्कि शांति और सहयोग में निहित है। जब तक वह कश्मीर के जुनून को नहीं छोड़ता, तब तक वह अपनी ही बनाई हुई भू-राजनीतिक भूलभुलैया में फंसा रहेगा, जबकि भारत प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता रहेगा। एक समुदाय के रूप में, हमें अपनी सरकार की दृढ़ता और हमारे देश की एकता की सराहना करनी चाहिए जो हमें इस तरह के बाहरी दबावों का सामना करने की शक्ति देती है।